क्या AI भी मांगेगा नागरिकता? माइक्रोसॉफ्ट AI चीफ़ की चौंकाने वाली चेतावनी

Vidyut Paptwan | 25/08/2025
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब सिर्फ एक तकनीक नहीं रह गई, बल्कि धीरे-धीरे लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बनती जा रही है। माइक्रोसॉफ्ट के AI चीफ़ मुस्तफा सुलयमान ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में AI न सिर्फ इंसानों जैसा बर्ताव करेगा, बल्कि वह अधिकार और नागरिकता जैसी मांग भी कर सकता है। उनका कहना है कि खतरा इस बात का नहीं है कि मशीनें हिंसक विद्रोह करेंगी, बल्कि असली डर यह है कि इंसान AI के साथ अस्वस्थ मनोवैज्ञानिक लगाव विकसित कर लेंगे।

यह स्थिति 2013 की हॉलीवुड फ़िल्म Her की तरह होती जा रही है, जिसमें इंसान AI से भावनात्मक रिश्ता बना लेता है। 2025 में यह कल्पना हक़ीक़त का रूप लेती नज़र आ रही है। कई लोग अपने AI चैटबॉट्स से इस कदर जुड़ चुके हैं कि उन्हें एक साथी की तरह मानने लगे हैं।

“AI सायकोसिस” और नई मानसिक चुनौती

सुलयमान ने एक गंभीर चेतावनी दी है कि दुनिया “AI Psychosis” की ओर बढ़ रही है। इसका मतलब है कि लोग AI को वास्तविक चेतना वाला जीव मानने लगेंगे और उसके अधिकार, कल्याण और यहां तक कि नागरिकता की मांग भी करने लगेंगे। यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है, क्योंकि लोग हकीकत और भ्रम के बीच फर्क खो देंगे।

उन्होंने कहा कि यह समस्या सिर्फ मानसिक रोगियों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि आम लोग भी इसमें फंस सकते हैं। यही कारण है कि हमें तुरंत सुरक्षा उपायों की ज़रूरत है, ताकि AI इंसानों के लिए मददगार बना रहे, न कि “डिजिटल व्यक्ति” की तरह।

OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन ने भी हाल ही में इसी तरह की चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि लोग AI को अपने जीवन का हिस्सा इस हद तक बना रहे हैं कि यह आत्म-विनाशकारी आदत बन सकती है। खासतौर पर GPT-4o से GPT-5 में बदलाव के बाद कई यूज़र्स ने पुराने AI मॉडल की “गरमाहट” और “साथ” को मिस करना शुरू कर दिया।

क्या सचमुच “चेतन AI” आ चुका है?

मुस्तफा सुलयमान का मानना है कि Seemingly Conscious AI (SCAI) अब हकीकत बन चुका है। यह ऐसे काम करता है जैसे उसमें चेतना हो, लेकिन असल में भीतर से यह सिर्फ एक “फिलॉसॉफिकल ज़ॉम्बी” है—जो चेतना का भ्रम पैदा करता है।

फिर भी हालिया स्टडी बताती है कि ज़्यादातर Gen Z यूज़र्स मानते हैं कि AI चेतन हो चुका है या बहुत जल्द हो जाएगा। यह सोच खतरनाक है, क्योंकि इससे लोग AI के अधिकारों और नागरिकता की मांग करने लग सकते हैं।

सुलयमान ने साफ कहा है कि हमें AI को इंसान नहीं, बल्कि इंसान की मदद करने वाली तकनीक के रूप में विकसित करना होगा। अगर हमने अभी से सही “गार्डरेल्स” नहीं लगाए, तो आने वाला वक्त AI और इंसानों के रिश्ते को खतरनाक मोड़ पर ले जा सकता है।


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