AI ने बच्चों से पेन भी छीन लिया! Talk To Write मशीन ने उड़ा दी पढ़ाई की नैतिकता की धज्जियाँ

Vidyut Paptwan | 05/08/2025
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केरल के युवा इंजीनियरिंग छात्र अजय एच ने एक ऐसी AI डिवाइस बनाई है, जिसने पढ़ाई की परिभाषा ही बदल दी है। ‘Talk To Write’ नाम की इस मशीन की सबसे खास बात यह है कि यह बच्चों की आवाज़ सुनकर उनके ही हैंडराइटिंग में होमवर्क लिख सकती है। अजय ने इस डिवाइस को ‘एंटे केरलं एक्सपो 2025’ में पेश किया, जहां दर्शकों ने इसे लाइव एक बच्चे का होमवर्क लिखते देखा और हैरान रह गए। सोशल मीडिया पर इसका वीडियो वायरल हो चुका है और अब तक 4.7 मिलियन से ज्यादा व्यूज़ मिल चुके हैं। यह डिवाइस AI का इस्तेमाल कर पहले किसी छात्र की लिखावट को सीखती है और फिर वही स्टाइल कॉपी पर हूबहू लिख देती है।

Talk To Write AI Tool

तारीफें भी मिलीं, लेकिन उठे बड़े सवाल

इस खोज की तारीफ हर तरफ हो रही है। लोग कह रहे हैं कि यह “इंडियन इनोवेशन का नया उदाहरण” है। लेकिन हर तकनीक के दो पहलू होते हैं। शिक्षकों और अभिभावकों ने चिंता जताई है कि यह डिवाइस बच्चों को मेहनत करने से दूर कर सकती है। जब कोई बच्चा खुद होमवर्क नहीं लिखेगा, तो वह विषय को समझेगा कैसे? इसी तरह, हैंडराइटिंग जैसी मूल स्किल्स धीरे-धीरे खत्म हो सकती हैं। कई लोगों का मानना है कि यह टेक्नोलॉजी पढ़ाई के नैतिक मूल्यों को कमजोर कर रही है और बच्चों को गलत आदतों की ओर ले जा सकती है।

क्या ये डिवाइस पढ़ाई में चीटिंग को बढ़ावा देगी?

शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ऐसी AI डिवाइस से बच्चों में “शॉर्टकट लेने की आदत” विकसित हो सकती है। वे मेहनत से पढ़ाई करने के बजाय मशीन के भरोसे रहने लगेंगे। इससे न केवल उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी, बल्कि सोचने-समझने की क्षमता भी घटेगी। कुछ स्कूलों ने तो AI टूल्स के इस्तेमाल को लेकर नियम बनाने शुरू कर दिए हैं। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल तभी फायदेमंद है, जब वह बच्चों को सशक्त बनाए, न कि उन्हें आलसी बना दे।

AI बनाम नैतिकता – अब क्या रास्ता अपनाएं?

अजय एच की यह इनोवेशन निश्चित रूप से कमाल की है, लेकिन इसके साथ एक नई बहस भी शुरू हो गई है। क्या हम बच्चों को ऐसे टूल्स देकर उनकी जिम्मेदारियों से दूर कर रहे हैं? क्या तकनीक उन्हें खुद कुछ करने की जगह दूसरों पर निर्भर बनाती जा रही है? AI का उपयोग सोच-समझकर करना बेहद ज़रूरी है। जहां यह छात्रों की मदद कर सकता है, वहीं इसका दुरुपयोग उन्हें शिक्षा की असली भावना से दूर भी कर सकता है। जरूरी है कि शिक्षक, अभिभावक और नीति-निर्माता मिलकर तय करें कि ऐसी तकनीकों को शिक्षा में कैसे और कितनी जगह दी जाए।

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