कैसे AI इंसानों पर हाथियों के हमले से बचा रहा है, पढ़ें इस IFS अफसर की कमाल की कहानी

Vidyut Paptwan | 21/02/2025
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छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में इंसानों और हाथियों के बीच टकराव एक बड़ी समस्या बन चुकी थी। लेकिन IFS अधिकारी वरुण जैन ने एक AI-पावर्ड अलर्ट सिस्टम तैयार करके इस समस्या को काफी हद तक सुलझा लिया है। यह तकनीक इंसानों की जान बचाने के साथ-साथ हाथियों के संरक्षण में भी मदद कर रही है।

How AI is protecting against elephant attacks

हाथियों की बिन बुलाए एंट्री से बढ़ी मुश्किलें!

उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में पहले हाथी नहीं पाए जाते थे, लेकिन ओडिशा से उनके प्रवास के कारण ग्रामीणों के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो गईं। लोग हाथियों से निपटने के सही तरीके नहीं जानते थे, जिससे संघर्ष बढ़ता गया।

पहले “मुनादी अलर्ट सिस्टम” के जरिए ग्रामीणों को ढोल बजाकर और माइक से सूचना दी जाती थी। लेकिन अप्रैल 2022 में यह तरीका पूरी तरह फेल हो गया, जब एक हाथी ने अचानक रास्ता बदल दिया और बिना चेतावनी दिए गांव में घुस गया। नतीजा – 24 घंटे में 3 लोगों की जान चली गई।

“यह मेरा पहला अनुभव था, जब मैंने इंसानी मौत देखी,” वरुण बताते हैं। “मुझे समझ आ गया कि हमें तेज और भरोसेमंद सिस्टम की जरूरत है।”

AI से आया हल, व्हाट्सएप बना हथियार!

वरुण और उनकी टीम ने फरवरी 2023 में एक बेसिक ऐप डेवलप किया, जो फुट पेट्रोलिंग टीमों से हाथियों की लोकेशन लेकर व्हाट्सएप पर गांव वालों को भेजता था। लेकिन इससे भी सिस्टम पूरी तरह ऑटोमैटिक नहीं हो पाया।

इसी दौरान गाजियाबाद की स्टार्टअप कंपनी ‘कल्पविग टेक्नोलॉजीज’ से जुड़कर इस सिस्टम को AI-पावर्ड बनाया गया। जून 2023 में ‘छत्तीसगढ़ एलीफेंट ट्रैकिंग एंड अलर्ट सिस्टम’ लॉन्च हुआ, जिसने कमाल कर दिया!

अब जंगल में फुट पेट्रोलिंग टीम ODK (Open Data Kit) ऐप से हाथियों की पहचान कर उनकी मूवमेंट, झुंड की जानकारी, पैरों के निशान, मल-मूत्र और नुकसान को रिकॉर्ड करती है। नेटवर्क ना मिलने पर भी डेटा स्टोर होता रहता है और जैसे ही नेटवर्क आता है, अपडेट हो जाता है।

इसके बाद AI सिस्टम ऑटोमेटिक तरीके से SMS, कॉल और व्हाट्सएप मैसेज भेज देता है, जिससे गांव वाले और वन विभाग पहले से सतर्क हो जाते हैं।

कई राज्यों में हाथियों की मूवमेंट ट्रैक करने के लिए GPS-थर्मल कॉलर लगाए जाते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में लॉजिस्टिकल और फंडिंग प्रॉब्लम के कारण ऐसा नहीं हो सका। वैसे भी हाथी बहुत चालाक होते हैं और ये कॉलर दो महीने में निकाल फेंकते हैं। इसलिए यहां पर फुट पेट्रोलिंग सबसे कारगर तरीका बनकर उभरी है।

22 महीनों में एक भी मौत नहीं!

फरवरी 2023 में AI सिस्टम लागू होने के बाद लगातार 22 महीनों तक एक भी इंसानी मौत नहीं हुई। पहले हर साल 5-6 लोगों की जान जाती थी, लेकिन इस टेक्नोलॉजी ने हालात बदल दिए।

हालांकि, दिसंबर 2024 में एक हादसा हुआ, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई। लेकिन वो घटना शराब के नशे की वजह से हुई, क्योंकि परिवार को एक घंटे पहले अलर्ट मिला था, फिर भी वे भाग नहीं पाए।

AI से जंगल में हरियाली की वापसी! 

इस सिस्टम की मदद से हाथियों के पसंदीदा रास्तों की पहचान हो पाई है। अब वन विभाग वहां बांस और फलदार पेड़ लगा रहा है, ताकि हाथी खाने की तलाश में गांव की ओर ना जाएं।

एक खास उदाहरण – ‘चंदा’ नाम का एक हाथियों का झुंड ओडिशा से छत्तीसगढ़, फिर मध्य प्रदेश होते हुए महाराष्ट्र चला गया। इस तरह के माइग्रेशन पैटर्न को ट्रैक कर वन विभाग बेहतर प्लानिंग कर पा रहा है।

वरुण जैन की टीम अब वाइब्रेशन सेंसर लगाने पर काम कर रही है, जिससे हाथियों की कम फ्रीक्वेंसी वाली आवाजों को डिटेक्ट किया जा सके। ये साउंड हाथी 10-15 किमी की दूरी से भी संचार करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। अगर ये कामयाब हुआ तो हम हाथियों की मूवमेंट पहले से भांपकर अलर्ट भेज सकेंगे।

सिर्फ AI नहीं, इंसानों को भी बदलनी होगी सोच!

AI ने काफी मदद की है, लेकिन असली समस्या हाथियों का गुस्सा है, जो लगातार बढ़ रहा है। इसकी बड़ी वजह – मानव निर्मित खतरे, जंगलों की कटाई, शिकार, और पटाखे जैसे विस्फोटक जाल।

“एक बार शिकारियों ने जंगली सूअरों को मारने के लिए एक पटाखा बम (Potash Bomb) लगाया। इसे मछली के टुकड़ों और मुर्गी की आंत से ढका गया था। लेकिन गलती से एक छोटे हाथी ने इसे निगल लिया और उसका चेहरा फट गया। वो करीब एक महीने तक तड़पता रहा और बाद में मर गया। वही हाथी दिसंबर 2024 की घटना का जिम्मेदार था,” वरुण बताते हैं।

छत्तीसगढ़ में AI पावर्ड अलर्ट सिस्टम की सफलता को देखते हुए वरुण मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड के अधिकारियों को इसे अपनाने में मदद कर रहे हैं। इस ऐप का खर्च सिर्फ ₹1.5 लाख प्रति वर्ष प्रति डिवीजन है, जिससे यह अन्य राज्यों के लिए भी सस्ता और प्रभावी समाधान बन सकता है।

AI से बनी इंसान और हाथी की दोस्ती! 

इस इनोवेटिव सिस्टम ने न केवल इंसानों की जान बचाई है, बल्कि ग्रामीणों और वन अधिकारियों के बीच भरोसा भी बढ़ाया है। वरुण का कहना है, “हमारे टाइगर रिजर्व में नक्सल समस्या भी है, जिससे इको-टूरिज्म नहीं बढ़ सका। लेकिन इस पहल ने हमें गांव वालों के करीब ला दिया है।”

वरुण जैन का यह मिशन साबित करता है कि तकनीक और इंसानी समझदारी मिलकर हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष खत्म कर सकती है। उनका सपना है कि एक दिन “न इंसान मरे, न कोई हाथी”, और उनके इस सफर में AI एक बड़ा हथियार साबित हो रहा है! 


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