रेगिस्तानों की रेत के नीचे छिपे प्राचीन राज़ों को ढूंढना हमेशा से एक बड़ा चैलेंज रहा है। लेकिन अब तकनीक ने वो कर दिखाया है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और एडवांस्ड इमेजिंग टेक्नोलॉजी के मेल से अब बिना फावड़ा चलाए, इतिहास के खोए हुए निशान मिल रहे हैं। दुबई के रेगिस्तान से लेकर मंगोलिया के स्टेपीज तक, एआई ने हज़ारों साल पुरानी सभ्यताओं के सबूत उजागर कर दिए हैं।

रेगिस्तानों में छुपा इतिहास क्यों ढूंढना था मुश्किल?
रेगिस्तानी इलाकों, जैसे अरब प्रायद्वीप का रूब-अल-खाली (Empty Quarter), हज़ारों वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। पारंपरिक तरीकों से यहां खुदाई करना बेहद महंगा, समय-साध्य और थकाने वाला काम है। shifting sands और विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र की वजह से बहुत से संभावित ऐतिहासिक स्थल आज भी अनछुए पड़े हैं। लेकिन अब, AI और Synthetic Aperture Radar (SAR) जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी ने इस मुश्किल काम को आसान बना दिया है।
कैसे काम करता है SAR और AI का यह जादू?
Synthetic Aperture Radar (SAR) एक खास प्रकार की रिमोट सेंसिंग तकनीक है, जो रडार सिग्नल्स का उपयोग करके पृथ्वी की सतह की हाई-रेज़ोल्यूशन इमेज बनाती है। इसकी खासियत यह है कि यह रेत, बर्फ, और पेड़ों जैसी बाधाओं के आर-पार देख सकती है। SAR सतह और उप-सतह संरचनाओं में छोटे-छोटे बदलाव पकड़ सकता है। इन डेटा को मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के जरिए प्रोसेस किया जाता है। AI, खासतौर पर डीप लर्निंग एल्गोरिदम, SAR डेटा में छिपे पैटर्न और एनोमलीज़ को पहचानता है।
एक उदाहरण देखें:
दुबई के रेगिस्तान में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके शोधकर्ताओं ने 5,000 साल पुराने मानव गतिविधि के निशान खोजे। इनमें प्राचीन बस्तियां और रास्ते शामिल हैं।
इस प्रोजेक्ट की एक प्रमुख आर्कियोलॉजिस्ट मारिया गोंज़ालेज़ कहती हैं- “बिना खुदाई किए इन जगहों को ढूंढना, इतिहास के छिपे अध्यायों को खोलने जैसा है”।
दुनिया भर में AI की कामयाबी के किस्से
दुबई ही नहीं, बल्कि मंगोलिया में भी इस तकनीक से मध्यकालीन स्थलों के हज़ारों संभावित निशान मिले। यहां तक कि सिल्क रोड के व्यापारिक रास्तों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के सबूत भी सामने आए। प्राचीन बस्तियों को जोड़ने वाले रास्तों का पता चला। इन रास्तों ने यह साबित किया कि प्राचीन समय में व्यापार कितना विस्तृत था। इससे माल, विचारों और लोगों के आवाजाही का नेटवर्क समझने में मदद मिली।
क्या हैं AI-आधारित तकनीक के चैलेंज?
हालांकि यह तकनीक बहुत क्रांतिकारी है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं:
- उच्च लागत और जटिलता:
SAR टेक्नोलॉजी को इस्तेमाल में लाने के लिए भारी निवेश, सैटेलाइट्स, और डेटा प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत होती है। - डेटा की सटीक व्याख्या:
कभी-कभी प्राकृतिक संरचनाएं, मानव निर्मित ढांचों की तरह दिख सकती हैं। इससे फॉल्स पॉज़िटिव का खतरा रहता है। - नैतिक सवाल:
नई खोजों से जुड़े अधिकार, संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहरों के जिम्मेदार उपयोग पर भी सवाल उठते हैं।
AI से भविष्य में क्या-क्या हो सकता है?
AI और SAR टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल केवल रेगिस्तानों तक सीमित नहीं रहेगा। जंगलों, पहाड़ों और यहां तक कि पोलर रीज़न में भी इसे लागू किया जा सकता है।
युनेस्को के एक प्रवक्ता कहते हैं, “AI सांस्कृतिक धरोहर को समझने और संरक्षित करने की हमारी क्षमता को काफी बढ़ा सकता है।”
AI और SAR का यह मिलाप न केवल खोए हुए इतिहास को फिर से जिंदा कर रहा है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखने में मदद करेगा।
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