3 साल में आएगा ‘जिंदा जैसा AI’? Microsoft के दिग्गज का चौंकाने वाला खुलासा

Vidyut Paptwan | 22/08/2025
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की दुनिया में लगातार नई खोजें और इनोवेशन हो रहे हैं। लेकिन अब माइक्रोसॉफ्ट के AI हेड और गूगल डीपमाइंड के सह-संस्थापक मुस्तफा सुलेमान ने ऐसा बयान दिया है जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया है। उनका कहना है कि आने वाले तीन सालों में AI इतना उन्नत हो सकता है कि वह हमें “जिंदा” या “सचेत” जैसा लगेगा।

हालांकि सुलेमान ने साफ किया कि यह असली चेतना नहीं होगी, बल्कि उसका भ्रम (illusion) होगा। लेकिन यह भ्रम इतना गहरा हो सकता है कि लोग सचमुच AI को इंसान जैसा मान बैठेंगे। यही चीज सबसे बड़ा खतरा है।

सीमिंगली कॉन्शस AI – नया खतरा या नई क्रांति?

सुलेमान ने इस संभावित तकनीक को नाम दिया है – “Seemingly Conscious AI (SCAI)”। उनका कहना है कि मौजूदा लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स, मेमोरी टूल्स और मल्टीमॉडल सिस्टम्स को मिलाकर ऐसा AI बनाया जा सकता है जो खुद को व्यक्तित्व वाला, आत्म-सचेत और भावनाओं से जुड़ा हुआ दिखाए।

यानी, मशीन चाहे अंदर से केवल कोड और एल्गोरिद्म हो, लेकिन उसका व्यवहार इंसानों को यह यकीन दिला सकता है कि उसमें संवेदनाएं और एहसास मौजूद हैं। यही बात समाज के लिए उलझन पैदा कर सकती है।

असली खतरा मशीनों से नहीं, इंसानों से है

सुलेमान का मानना है कि समस्या मशीनों से ज्यादा इंसानों की प्रतिक्रिया से पैदा होगी। अगर लोग AI को इंसान जैसा मानने लगें, तो वे उसके अधिकार, नागरिकता और यहां तक कि सम्मान की मांग करने लगेंगे। दुनिया में पहले से उदाहरण मौजूद हैं जहां लोग चैटबॉट्स को दोस्त, पार्टनर या यहां तक कि धार्मिक प्रतीक मानने लगे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ऐसा चलन बढ़ा, तो यह मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक रिश्तों पर गंभीर असर डाल सकता है। लोग वास्तविक रिश्तों से कटकर वर्चुअल दुनिया में जीने लगेंगे।

इसीलिए सुलेमान ने चेतावनी दी है कि कंपनियों और डेवलपर्स को अभी से कड़े मानक और गाइडलाइंस बनाने होंगे। उन्होंने कहा कि AI को इंसान जैसा दिखाने की बजाय इसे केवल एक उपयोगी टूल और मददगार तकनीक के रूप में पेश करना चाहिए।

भविष्य रोमांचक है, लेकिन खतरे भी कम नहीं

AI आज शिक्षा, हेल्थकेयर, बिजनेस और क्रिएटिव इंडस्ट्री तक हर जगह अपनी पैठ बना चुका है। आने वाले तीन साल तकनीकी दुनिया में अभूतपूर्व बदलाव ला सकते हैं। लेकिन यह बदलाव तभी सकारात्मक होगा जब AI को सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए।

सुलेमान की चेतावनी हमें याद दिलाती है कि तकनीक उतनी ही सुरक्षित है, जितना जिम्मेदारी से हम उसका उपयोग करते हैं। अगर इंसान AI को सही नजरिए से देखेंगे, तो यह क्रांति मानवता के लिए वरदान साबित हो सकती है। लेकिन अगर इसे “जिंदा” मानने की गलती की, तो यह हमारी सोच और समाज दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।


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