दिल्ली की कक्षाओं में एक बड़ा बदलाव आ चुका है। जहां पहले पढ़ाई का मतलब था किताबों में सिर खपाना, टीचर्स से सवाल पूछना और देर रात तक प्रोजेक्ट्स पर मेहनत करना, वहीं अब छात्र सीधे AI टूल्स से अपना असाइनमेंट बना रहे हैं। Centre for Policy Research and Governance (CPRG) की हाल ही में जारी रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले करीब 50% छात्र हर हफ्ते कई बार AI टूल्स का इस्तेमाल करते हैं। चौथाई छात्र तो रोजाना AI की मदद से अपने काम पूरे कर रहे हैं। पहले जो एक सीखने की प्रक्रिया थी, अब वह केवल एक तेजी से टास्क खत्म करने की प्रक्रिया बन गई है।

छात्रों की माने तो AI उनका समय बचाता है, चीजें आसान बनाता है और पढ़ाई के बोझ को कम करता है। CPRG की रिपोर्ट बताती है कि 84% छात्र AI से रिसर्च करते हैं, 76% लेखन कार्य में इसका सहारा लेते हैं और 68% इसे कठिन विषयों को समझने के लिए यूज करते हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से सिर्फ 6% छात्र ही AI द्वारा दी गई जानकारी को पूरी तरह सही मानते हैं। ज्यादातर छात्र या तो जवाबों को क्रॉस चेक करते हैं या बस आउटलाइन लेते हैं और खुद से दोबारा लिखते हैं। इसका मतलब साफ है कि छात्र AI पर भरोसा नहीं कर पा रहे, फिर भी वह इससे दूरी नहीं बना पा रहे। यह सुविधा अब आदत बनती जा रही है और आदत धीरे-धीरे मेहनत को खत्म कर रही है।
शिक्षकों की चिंता इस बदलाव को लेकर बढ़ती जा रही है। कई प्रोफेसर्स ने बताया है कि आजकल छात्रों द्वारा सबमिट किए गए असाइनमेंट बेहद परफेक्ट लगते हैं जैसे किसी प्रोफेशनल लेखक ने लिखे हों। लेकिन जब उन्हीं छात्रों से सवाल पूछे जाते हैं तो वह जवाब नहीं दे पाते है। यानी असाइनमेंट तो सबमिट हो जाता है, लेकिन छात्र उस विषय को समझ नहीं पाते है। कई शिक्षकों को यह भी शिकायत है कि अब छात्रों में तर्क गढ़ने की, विश्लेषण करने की और गहराई से सोचने की क्षमता कम होती जा रही है। वो सिर्फ प्वाइंट्स इकट्ठा कर रहे हैं और असाइनमेंट जमा कर रहे हैं जबकि पढ़ाई का असली मकसद तो सोचने की क्षमता विकसित करना होता है।
एक और बड़ी समस्या है कॉलेजों की तैयारी की कमी। अब तक दिल्ली के अधिकांश उच्च शिक्षण संस्थानों में AI को लेकर कोई सटीक गाइडलाइन नहीं बनी है। बहुत कम कॉलेजों ने AI टूल्स के उपयोग को लेकर स्पष्ट नियम दिए हैं। CPRG की रिपोर्ट यह भी बताती है कि 47% छात्र नहीं जानते कि AI टूल्स को प्रभावी ढंग से कैसे उपयोग करें और 45% को यह भी पता नहीं कि कौन-कौन से टूल्स उपलब्ध हैं। इससे यह समझ आता है कि AI अब केवल एक तकनीकी मदद नहीं बल्कि एक नया “शैक्षणिक अंतर” बनता जा रहा है। जिन छात्रों के पास संसाधन हैं वे इन टूल्स में निपुण हो रहे हैं जबकि बाकी छात्र अभी भी शुरुआत तक नहीं कर पाए हैं।
AI का इस्तेमाल गलत नहीं है लेकिन जब यह सोचने की जगह लेने लगे तो यह खतरनाक हो जाता है। शिक्षा कभी भी केवल जानकारी इकट्ठा करने का नाम नहीं रही है। यह हमेशा से एक प्रक्रिया रही है जिसमें संघर्ष, सवाल, विचार और विश्लेषण शामिल होता है। अगर छात्र केवल कॉपी-पेस्ट करके असाइनमेंट जमा करने लगें तो वह न तो सोच पाएंगे न ही कुछ नया कर पाएंगे। दिल्ली के छात्र AI का इस्तेमाल कर रहे हैं और शायद करना भी चाहिए लेकिन शिक्षकों, संस्थानों और नीतियों को अब यह तय करना होगा कि यह इस्तेमाल किस हद तक सही है। वरना एक दिन ऐसा आएगा जब असाइनमेंट तो होंगे लेकिन उनमें सोच नहीं होगी।
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