आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को भविष्य की तकनीक कहा जा रहा है और अनुमान है कि साल 2030 तक यह ग्लोबल इकोनॉमी में 6 ट्रिलियन डॉलर का योगदान कर सकता है। कंपनियां भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं और 600 अरब डॉलर सालाना कमाई की उम्मीद लगा रही हैं। लेकिन हकीकत यह है कि भारी-भरकम निवेश के बावजूद AI प्रोजेक्ट्स अभी तक बड़े पैमाने पर नाकाम साबित हो रहे हैं। यह स्थिति टेक इंडस्ट्री में डॉट कॉम बबल जैसी आशंका पैदा कर रही है, जब 2000 के शुरुआती वर्षों में इंटरनेट कंपनियों के ढहने से बाजार बुरी तरह हिल गया था।

निवेश तो अरबों में, लेकिन नतीजे न के बराबर
कैंब्रिज स्थित एमआईटी की एक हालिया स्टडी ने इस चमकदार तस्वीर की सच्चाई उजागर कर दी है। अध्ययन के मुताबिक, 2025 की पहली छमाही में किए गए 44 अरब डॉलर के निवेश के बावजूद 95 फीसदी कॉरपोरेट AI प्रोजेक्ट्स फेल हो गए। रिपोर्ट ‘द जेनएआई डिवाइड: स्टेट ऑफ एआई बिजनेस 2025’ बताती है कि कंपनियां अपने बजट का आधे से ज्यादा हिस्सा सेल्स और मार्केटिंग ऑटोमेशन पर खर्च कर रही हैं, जबकि लॉजिस्टिक्स, रिसर्च और ऑपरेशंस जैसे अहम क्षेत्रों में निवेश बेहद कम है। यही वजह है कि पायलट प्रोजेक्ट्स तो धूमधाम से शुरू होते हैं, लेकिन स्केल पर आते ही ढह जाते हैं।
कंपनियों की रणनीति में बड़ी चूक
एक और बड़ी समस्या यह है कि कंपनियां बिना कस्टमाइजेशन के बड़े भाषा मॉडल अपना रही हैं। नतीजा यह है कि ये टूल्स कर्मचारियों का बोझ घटाने के बजाय भ्रम पैदा कर रहे हैं। एमआईटी के ट्रायल में पाया गया कि सबसे उन्नत मॉडल भी दफ्तर के केवल 30 फीसदी काम को ही भरोसेमंद तरीके से संभाल पा रहे हैं। गूगल जैसे दिग्गज भी अब भर्ती प्रक्रियाओं में AI धोखाधड़ी को रोकने के लिए कड़े कदम उठा रहे हैं। वहीं, कर्मचारियों का भरोसा भी डगमगा रहा है। सर्वे में 62 फीसदी प्रोफेशनल्स ने माना कि AI को लेकर जितना हाइप है, हकीकत उससे कहीं पीछे है। यही कारण है कि कई कंपनियां नौकरी कटौती की अपनी योजनाओं को फिलहाल रोक रही हैं।
स्टार्टअप्स से सीख सकती हैं बड़ी कंपनियां
हालांकि तस्वीर पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि छोटे स्टार्टअप्स सीमित संसाधनों के बावजूद समझदारी से AI का इस्तेमाल कर रहे हैं। कई स्टार्टअप्स ने साझेदारियों और इनोवेटिव मॉडल्स की मदद से सिर्फ एक साल में 20 मिलियन डॉलर तक की कमाई की है। यह संकेत है कि AI का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि कंपनियां इसे केवल तकनीकी चमक तक सीमित रखती हैं या फिर इसे टिकाऊ बिजनेस वैल्यू में बदल पाती हैं।
भले ही भविष्य में AI से बड़े आर्थिक लाभ की उम्मीद की जा रही है, लेकिन वर्तमान में नतीजे यह साबित करते हैं कि सिर्फ निवेश ही काफी नहीं है। असली जीत उसी की होगी, जो तकनीक को सही रणनीति और बिजनेस मॉडल से जोड़कर उपयोग में लाएगा।