आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब केवल टेक्नोलॉजी का भविष्य नहीं रहा, बल्कि यह नौकरी के अवसरों को भी तेजी से बदल रहा है। VC फर्म SignalFire की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 से लेकर अब तक बिग टेक कंपनियों में नए ग्रेजुएट्स के लिए जॉब ओपनिंग्स 50% से ज्यादा कम हो गई हैं। महामारी से पहले जहां 15% भर्ती नए ग्रेजुएट्स से होती थी, अब यह संख्या घटकर केवल 7% रह गई है। इसका सीधा असर फ्रेशर्स पर पड़ रहा है जो पहले एंट्री लेवल से करियर की शुरुआत करते थे।

AI ने क्यों छीनी एंट्री लेवल जॉब्स?
रिपोर्ट में बताया गया कि कंपनियां अब AI का इस्तेमाल उन कामों के लिए कर रही हैं, जो पहले जूनियर कर्मचारियों को दिए जाते थे। इसमें डेटा क्लीनिंग, रिपोर्ट समरी बनाना और क्वालिटी चेक जैसे काम शामिल हैं। इससे कंपनियों को शॉर्ट-टर्म में लागत बचत हो रही है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि लंबे समय में यह कंपनियों की लीडरशिप पाइपलाइन को कमजोर कर सकता है।
एक उदाहरण में कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट केनेथ कांग ने Fortune को बताया कि उन्होंने एक साल में 2,500 से ज्यादा नौकरियों के लिए अप्लाई किया, लेकिन सिर्फ 10 इंटरव्यू कॉल आए। अच्छी GPA और इंटर्नशिप के बावजूद उन्हें लगभग 10 महीने तक संघर्ष करना पड़ा। आखिरकार, उन्हें वही कंपनी नौकरी पर रख पाई जहां उन्होंने पहले इंटर्नशिप की थी। यह दिखाता है कि पारंपरिक कॉर्पोरेट करियर पाथ अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।
इंटर्नशिप से लेकर पढ़ाई तक AI का असर
सिर्फ एंट्री लेवल जॉब ही नहीं, बल्कि इंटर्नशिप से फुल-टाइम जॉब में कन्वर्ज़न भी अब पांच साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। 2023-24 में केवल 62% इंटर्न्स को फुल-टाइम ऑफर मिला, जिसमें हाइब्रिड इंटर्न्स की स्थिति और भी खराब रही। इसके अलावा, Handshake प्लेटफॉर्म के डेटा के अनुसार, पिछले साल पारंपरिक कॉर्पोरेट रोल्स के एंट्री लेवल पोस्टिंग्स में लगभग 15% की गिरावट दर्ज की गई।
AI का असर शिक्षा पर भी साफ दिख रहा है। स्टूडेंट्स अब ChatGPT जैसे टूल्स का इस्तेमाल कर निबंध लिखने और लंबे टेक्स्ट का सार निकालने लगे हैं। लेकिन MIT की एक स्टडी चेतावनी देती है कि ऐसे टूल्स पर अधिक निर्भरता से छात्रों की ब्रेन एक्टिविटी और क्रिटिकल थिंकिंग स्किल्स पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। प्रोफेसर भी मानते हैं कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो आने वाली पीढ़ी जरूरी स्किल्स से वंचित रह सकती है।