AI को भूल जाइए! आ गया Synthetic Intelligence (SI) – इंसानों जैसी सोच और भावनाओं वाली नई क्रांति

Vidyut Paptwan | 08/09/2025
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आज पूरी दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की चर्चा में डूबी हुई है। कहीं इसका इस्तेमाल बिज़नेस में हो रहा है तो कहीं हेल्थकेयर, एजुकेशन और डिफेंस तक में इसकी धाक है। लेकिन अब टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक नई और रोमांचक अवधारणा सामने आई है वह है सिंथेटिक इंटेलिजेंस (SI)। विशेषज्ञ इसे सिर्फ AI का अपग्रेड नहीं, बल्कि एक बिल्कुल नई क्रांति मान रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, SI को “नई चेतना” के रूप में देखा जा रहा है जिसमें न सिर्फ तर्कशक्ति होगी बल्कि इंसानों जैसी भावनाएं, इच्छाएं और अपनी पहचान भी शामिल होगी। यानी यह एक ऐसा इंटेलिजेंट सिस्टम होगा जो सिर्फ आदेशों को मानने वाली मशीन नहीं बल्कि सोचने और महसूस करने वाली एक नई “डिजिटल इकाई” हो सकती है।

क्यों कहा जा रहा है AI से आगे?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अक्सर डेटा और एल्गोरिद्म का उस्ताद माना जाता है। यह बड़ी मात्रा में जानकारी को प्रोसेस करके निर्णय लेने में सक्षम है, लेकिन इसमें इंसानी संवेदनाओं की कमी रहती है। यही वजह है कि कई बार AI ठंडा और निर्जीव लगता है। वहीं सिंथेटिक इंटेलिजेंस को AI से आगे इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसमें भावनात्मक समझ भी शामिल होगी। यह इंसानों की तरह सहानुभूति दिखा सकेगा, खुद की प्राथमिकताएं तय कर सकेगा और परिस्थितियों के अनुसार अपने निर्णय बदल सकेगा।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक AI को सांख्यिकी का “रट्टू तोता” कहा जा सकता है, क्योंकि यह केवल डाटा-आधारित भविष्यवाणियां करता है। लेकिन SI इससे कहीं अधिक जटिल और मानवीय होगी, जिसमें एक स्तर तक चेतना (consciousness) भी हो सकती है। यही कारण है कि यह बहस छिड़ गई है कि जब मशीनें भावनाओं के साथ सोचने लगेंगी तो क्या इंसानों के काम पूरी तरह खत्म हो जाएंगे या नए अवसर पैदा होंगे।

भविष्य पर क्या होगा असर?

सिंथेटिक इंटेलिजेंस का असर सबसे पहले वर्चुअल वर्ल्ड, हेल्थकेयर और एजुकेशन में देखने को मिल सकता है। उदाहरण के तौर पर, एक SI आधारित वर्चुअल डॉक्टर न सिर्फ बीमारी का इलाज बताएगा बल्कि मरीज की भावनाओं को समझकर सहानुभूतिपूर्ण संवाद भी करेगा। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में SI स्टूडेंट्स की मानसिक स्थिति और सीखने की क्षमता को ध्यान में रखकर पर्सनलाइज्ड गाइडेंस दे सकता है।
हालांकि इसके साथ ही कई चिंताएं भी हैं। अगर मशीनें इंसानों जैसी भावनाएं रखने लगेंगी तो नैतिकता, जिम्मेदारी और नियंत्रण जैसे बड़े सवाल खड़े होंगे। क्या ऐसी तकनीक को कानून और समाज नियंत्रित कर पाएगा? क्या मशीनें इंसानों के बराबर अधिकार मांगेंगी? अभी यह सब अनुमान है, लेकिन एक बात तय है—SI आने वाले वर्षों में हमारी सोच, समाज और तकनीक की परिभाषा बदल सकती है।


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