AI को ट्रेन कैसे किया जाता है? जानिए पूरी डिटेल्स

Vidyut Paptwan | 30/08/2025
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आज की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हर किसी की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है। चाहे वह गूगल मैप्स से रास्ता ढूँढना हो, इंस्टाग्राम पर रील्स की सिफारिश हो या चैटबॉट से बातचीत करना—हर जगह AI काम कर रहा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इन AI मॉडल्स को ट्रेन कैसे किया जाता है? यह प्रक्रिया बेहद दिलचस्प और तकनीकी होती है, जिसमें कई चरण शामिल होते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि AI को ट्रेन करने का असली तरीका क्या है।

समस्या की पहचान और डेटा की तैयारी

AI ट्रेनिंग की शुरुआत सबसे पहले समस्या की पहचान से होती है। मान लीजिए हमें एक ऐसा सिस्टम बनाना है जो तस्वीर देखकर यह बता सके कि उसमें कुत्ता है या बिल्ली। अब इस समस्या को हल करने के लिए सबसे पहले बड़ी मात्रा में डेटा इकट्ठा किया जाता है। यह डेटा इमेज, टेक्स्ट, वीडियो या ऑडियो किसी भी रूप में हो सकता है। लेकिन सिर्फ डेटा इकट्ठा करना काफी नहीं होता, उसे साफ करना, लेबल करना और सही ढंग से व्यवस्थित करना भी ज़रूरी होता है। इसी प्रक्रिया को डेटा प्रीप्रोसेसिंग कहा जाता है।

डेटा को तीन हिस्सों में बाँटा जाता है—ट्रेनिंग सेट, वैलिडेशन सेट और टेस्ट सेट। ट्रेनिंग सेट से मॉडल को सिखाया जाता है, वैलिडेशन सेट से देखा जाता है कि कहीं मॉडल ओवरफिट तो नहीं हो रहा, और टेस्ट सेट से इसकी असली क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।

मॉडल का चयन और ट्रेनिंग प्रोसेस

डेटा तैयार होने के बाद अगला चरण है सही मॉडल का चुनाव करना। अलग-अलग समस्याओं के लिए अलग-अलग मॉडल उपयुक्त होते हैं। उदाहरण के लिए, इमेज रिकग्निशन के लिए कॉन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क (CNN) और टेक्स्ट जनरेशन के लिए ट्रांसफॉर्मर आधारित मॉडल जैसे GPT या BERT इस्तेमाल किए जाते हैं।

ट्रेनिंग के दौरान मॉडल के अंदर लाखों-करोड़ों पैरामीटर (weights और biases) बार-बार एडजस्ट किए जाते हैं। यह एडजस्टमेंट बैकप्रोपेगेशन नामक तकनीक से होता है। जब मॉडल गलत आउटपुट देता है तो उसका एरर मापा जाता है और उसी आधार पर वज़न बदले जाते हैं, ताकि अगली बार जवाब और सटीक हो। यही चक्रीय प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है और मॉडल धीरे-धीरे सीखता है।

हाइपरपैरामीटर ट्यूनिंग और उन्नत तकनीकें

AI ट्रेनिंग सिर्फ डेटा और मॉडल तक सीमित नहीं होती, बल्कि इसमें हाइपरपैरामीटर ट्यूनिंग भी शामिल है। लर्निंग रेट, बैच साइज और रेगुलराइजेशन जैसे मान बदलकर मॉडल की सटीकता को और बेहतर बनाया जाता है। कई बार यह काम AutoML जैसे टूल्स से भी किया जाता है जो इस प्रक्रिया को स्वचालित बना देते हैं।

यही नहीं, आजकल मानव प्रतिक्रिया के आधार पर भी मॉडल को सुधारने की तकनीक अपनाई जाती है जिसे RLHF (Reinforcement Learning from Human Feedback) कहते हैं। उदाहरण के लिए, जब चैटबॉट कोई गलत जवाब देता है तो मानव ट्रेनर उसे सुधारते हैं और उसी सुधार को मॉडल में शामिल कर दिया जाता है। इसके अलावा, फेडेरेटेड लर्निंग भी एक नई तकनीक है जिसमें यूज़र्स का डेटा सर्वर पर भेजने की बजाय लोकल डिवाइस पर ट्रेनिंग होती है, जिससे प्राइवेसी बनी रहती है।

जिम्मेदारी, तैनाती और भविष्य

AI मॉडल तैयार होने के बाद काम यहीं खत्म नहीं होता। इसे असली दुनिया में तैनात किया जाता है और लगातार मॉनिटर किया जाता है। अगर यूज़र्स का व्यवहार बदलता है या डेटा पैटर्न अलग होता है तो मॉडल को री-ट्रेन करना पड़ता है। यही कारण है कि AI ट्रेनिंग एक निरंतर प्रक्रिया है।

साथ ही, जिम्मेदार AI (Responsible AI) पर भी जोर दिया जा रहा है। इसका मतलब है कि मॉडल न सिर्फ सटीक होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष, पारदर्शी और सुरक्षित भी होना चाहिए। गलत ट्रेनिंग या पक्षपाती डेटा से मॉडल भेदभाव कर सकता है, इसलिए कंपनियाँ अब एथिकल AI पर भी खास ध्यान दे रही हैं।

भविष्य में जैसे-जैसे डेटा बढ़ेगा और कंप्यूटिंग पावर सस्ती होगी, AI ट्रेनिंग और भी आसान और शक्तिशाली बन जाएगी। यही वजह है कि आने वाले सालों में AI हर सेक्टर—चाहे वह हेल्थकेयर हो, शिक्षा हो या बिज़नेस—में क्रांति लाने वाला है।


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