दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक Meta (पहले Facebook) एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार कारण किसी नए इनोवेशन का नहीं बल्कि भर्ती रोकने का है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, Meta ने पिछले हफ्ते अपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डिवीजन में सभी हायरिंग को अचानक फ्रीज़ कर दिया है। यह कदम कंपनी के “Superintelligence Lab” में चल रहे बड़े पैमाने पर पुनर्गठन का हिस्सा बताया जा रहा है। अब बाहरी भर्तियां ही नहीं, बल्कि इंटरनल टीम ट्रांसफर पर भी रोक लगा दी गई है। सिर्फ वही अपवाद होंगे जिन्हें Meta के नए चीफ AI ऑफिसर Alexandr Wang से मंजूरी मिलेगी।

यह फैसला तब आया है जब Meta ने पिछले एक साल में AI टैलेंट वॉर में अरबों डॉलर झोंक दिए थे। कंपनी ने OpenAI, Google DeepMind, Apple और Anthropic जैसी दिग्गज कंपनियों से 50 से ज्यादा टॉप रिसर्चर्स को खींच लाने के लिए बेतहाशा ऑफर दिए। कुछ पैकेज तो $100 मिलियन तक पहुंच गए, और एक रिसर्चर को तो कथित तौर पर $1.5 बिलियन का कॉम्पनसेशन ऑफर किया गया।
टैलेंट वॉर से ब्रेन ड्रेन तक
Meta ने टैलेंट हथियाने के लिए $14 बिलियन खर्च कर Scale AI में हिस्सेदारी खरीदी और उसके को-फाउंडर Alexandr Wang को चीफ AI ऑफिसर बनाया। यहां तक कि कंपनी ने GitHub के पूर्व CEO Nat Friedman और Safe Superintelligence के को-फाउंडर Daniel Gross को भी लुभाने की कोशिश की। लेकिन इस आक्रामक रणनीति के बावजूद हालात उल्टे पड़ते दिख रहे हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, Meta के कई बड़े रिसर्चर्स और एग्जीक्यूटिव्स ने हाल ही में कंपनी छोड़ दी है। Angela Fan, जिन्होंने Meta का मशहूर Llama AI Model बनाने में अहम भूमिका निभाई थी, अब OpenAI से जुड़ गई हैं। इसी तरह Loredana Crisan, जो Meta में जनरेटिव AI की VP थीं, अब Figma की चीफ डिजाइन ऑफिसर बन गई हैं। इतना ही नहीं, Meta के पूर्व हेड ऑफ AI रिसर्च Joelle Pineau भी इस साल Cohere नामक स्टार्टअप से जुड़ चुके हैं।
AI प्रोजेक्ट्स की नाकामी ने भी हालात खराब किए हैं। अप्रैल में लॉन्च हुआ Meta का नया AI मॉडल उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया और कंपनी को अपना “Behemoth” फ्रंटियर मॉडल छोड़कर नई शुरुआत करनी पड़ी। इस असफलता के बाद खुद Mark Zuckerberg को भर्ती और रणनीति में सीधे शामिल होना पड़ा।
निवेशकों का बढ़ता दबाव और भविष्य की चुनौती
Meta का यह फैसला निवेशकों के बढ़ते दबाव का नतीजा माना जा रहा है। कंपनी का अनुमान है कि इस साल उसके कैपिटल एक्सपेंडिचर $72 बिलियन तक पहुंच सकते हैं, जिनका बड़ा हिस्सा AI डेटा सेंटर्स और रिसर्चर्स की सैलरी पर खर्च होगा। Morgan Stanley जैसे बड़े वित्तीय संस्थानों ने चेतावनी दी है कि इतनी भारी-भरकम स्टॉक-बेस्ड कॉम्पनसेशन पैकेजेस कंपनी के शेयर बायबैक और निवेशकों को रिटर्न देने की क्षमता पर असर डाल सकते हैं।
यह स्थिति Meta के लिए déjà vu जैसी है, क्योंकि इससे पहले उसका मेटावर्स प्रोजेक्ट भी भारी खर्च और बड़े पैमाने पर हायरिंग के बाद अंततः धीमा पड़ गया था। अब AI पर अरबों डॉलर झोंकने के बावजूद ठोस नतीजे न मिलने से सवाल उठने लगे हैं कि क्या Meta लंबे समय की टेक्नोलॉजी महत्वाकांक्षाओं और तुरंत मुनाफे के बीच फंस चुका है।
कंपनी का कहना है कि यह भर्ती रोकना केवल “ऑर्गनाइजेशनल प्लानिंग” है, लेकिन टेक इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि असली वजह AI में हो रही भारी लागत और घटता भरोसा है। जाहिर है, आने वाले महीनों में यह तय होगा कि Meta सच में AI वॉर में बाज़ी मार पाता है या अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी Google, OpenAI और Microsoft जैसे खिलाड़ियों से पीछे छूट जाता है।