AI के बढ़ते इस्तेमाल ने दुनिया भर में बिजली की खपत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2030 तक बिजली की खपत तीन गुना तक बढ़ सकती है और इसका सबसे बड़ा कारण होंगे AI वर्कलोड्स और उन्हें सपोर्ट करने वाले विशाल डेटा सेंटर्स। McKinsey का अनुमान है कि इस डिमांड को पूरा करने के लिए लगभग 160 न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के बराबर नई क्षमता जोड़नी पड़ेगी। नॉर्दर्न वर्जीनिया जैसे इलाकों में, जहां दुनिया के सबसे बड़े डेटा सेंटर क्लस्टर हैं, पहले ही ग्रिड कैपेसिटी अपनी लिमिट पर है। यह स्थिति साफ दिखाती है कि अगर बदलाव नहीं हुआ तो आने वाले समय में बिजली संकट गहराने वाला है।

टेक्नोलॉजी बन सकती है समाधान
AI सिर्फ बिजली खाने वाला सिस्टम नहीं है, बल्कि यह खुद बिजली संकट का समाधान भी बन सकता है। AI की मदद से पावर ग्रिड ऑपरेटर्स बिजली की डिमांड को पहले से प्रेडिक्ट कर सकते हैं, ट्रांसमिशन में होने वाली बिजली की बर्बादी को कम कर सकते हैं और ज्यादा स्मार्ट फैसले ले सकते हैं कि नई एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर कहां और कैसे लगाया जाए। मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर्स, ग्रिड-स्केल बैटरियां और स्मार्ट ग्रिड जैसी तकनीकें अब तेजी से आगे बढ़ रही हैं, जिनकी सबसे ज्यादा जरूरत हाई-डेंसिटी एनर्जी डिमांड वाले क्षेत्रों में है।
मौजूदा सिस्टम का स्मार्ट इस्तेमाल
नई बिजली उत्पादन क्षमता बनाने से पहले जरूरी है कि मौजूदा सिस्टम को और ज्यादा स्मार्ट बनाया जाए। डिजिटल ट्विन टेक्नोलॉजी के जरिए बिजली ग्रिड का वर्चुअल मॉडल तैयार कर उसकी परफॉर्मेंस बेहतर की जा सकती है। AI की मदद से पीक टाइम में बिजली के लोड को स्मार्ट तरीके से शिफ्ट किया जा सकता है, ताकि ब्लैकआउट जैसी स्थिति से बचा जा सके। कुछ डेटा सेंटर्स अब इस तरह डिजाइन किए जा रहे हैं कि जरूरत पड़ने पर वे ग्रिड में बिजली वापस सप्लाई कर सकें। यह तरीका न सिर्फ लागत कम करेगा बल्कि कार्बन उत्सर्जन को भी घटाएगा, जिससे पर्यावरण पर दबाव कम होगा।
नीतियां और जनभागीदारी
AI और बिजली सेक्टर के बीच सही संतुलन बनाने के लिए सरकार, पावर कंपनियों और टेक सेक्टर को मिलकर काम करना होगा। पॉलिसी और रेगुलेशन ऐसे होने चाहिए जो इनोवेशन को बढ़ावा दें और साथ ही बिजली की उपलब्धता और समान वितरण सुनिश्चित करें। आम लोगों को यह समझाना जरूरी है कि AI सिर्फ बिजली की खपत बढ़ाने वाला नहीं बल्कि एक ग्रीनर, ज्यादा एफिशिएंट और भविष्य के अनुकूल सिस्टम बनाने वाला टूल है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेटा और रिसर्च शेयरिंग जरूरी है ताकि दुनिया मिलकर इस बढ़ते बिजली संकट का समाधान निकाल सके। अगर सही दिशा में कदम उठाए गए, तो AI की बढ़ती बिजली डिमांड हमें एक स्मार्ट, मजबूत और सस्टेनेबल एनर्जी सिस्टम की ओर ले जा सकती है।
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