Perovskite Solar Strip: बंद कमरे में भी सूरज की रोशनी से बनाती है बिजली, बैटरियों की होगी छुट्टी!

Durgesh Paptwan
Durgesh Paptwan | 08/05/2025
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Perovskite Solar Strip एक नई तरह की सोलर टेक्नोलॉजी है जो परंपरागत सोलर पैनलों से बिल्कुल अलग है। यह स्ट्रिप्स बहुत पतली होती हैं और इन्हें किसी भी सतह पर लगाया जा सकता है, चाहे वह दीवार हो, खिड़की हो या फिर पर्दा। इनका मुख्य फीचर यह है कि यह कम रोशनी में भी बिजली बना सकती हैं। मतलब, जहां आम सोलर पैनल को सीधी धूप चाहिए होती है, वहीं Perovskite सोलर स्ट्रिप्स को केवल थोड़ी-सी रोशनी ही काफी है। यही वजह है कि यह टेक्नोलॉजी अब तेजी से चर्चा में है और इसे भविष्य की बिजली का हल माना जा रहा है।

Perovskite solar strip review

कैसे काम करती है यह टेक्नोलॉजी?

Perovskite एक खास प्रकार का क्रिस्टल मैटेरियल होता है जो सूरज की रोशनी को बेहद कुशलता से बिजली में बदल सकता है। इसे जब स्ट्रिप के रूप में बनाया जाता है, तो यह कई गुना हल्का, पतला और लचीला हो जाता है। यह स्ट्रिप्स खिड़की से छनकर आने वाली रोशनी, कमरे की LED लाइट्स या यहां तक कि मोबाइल फ्लैश जैसी लाइट से भी बिजली बना सकती हैं। इसकी संवेदनशीलता इतनी अधिक होती है कि यह उन जगहों पर भी बिजली बना सकती है जहां सीधी धूप नहीं आती है। यही वजह है कि यह सोलर स्ट्रिप्स खासतौर पर इंडोर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए गेम चेंजर बन रही हैं।

बैटरियों का विकल्प बन सकती है Perovskite स्ट्रिप

आज की दुनिया में लगभग हर छोटा गैजेट बैटरी पर निर्भर है। स्मार्टवॉच, सेंसर्स, रिमोट्स, फिटनेस बैंड्स और यहां तक कि स्मार्ट होम डिवाइसेज़ भी बैटरी से चलते हैं। ऐसे में बार-बार बैटरी बदलना या चार्ज करना एक झंझट भरा काम बन जाता है। लेकिन अगर यह डिवाइसेज़ खुद ही अपने लिए बिजली बना सकें, तो सोचिए कितना आसान हो जाएगा सब कुछ! Perovskite Solar Strips ऐसी ही उम्मीद जगा रही हैं। इन्हें अगर सही से डिजाइन किया जाए, तो यह लगातार बिजली देती रहेंगी और बैटरियों की जरूरत ही खत्म हो जाएगी। इससे न केवल पैसे की बचत होगी, बल्कि ई-वेस्ट भी घटेगा।

भारत में कब और कैसे आएगी ये टेक्नोलॉजी?

दुनिया के कई रिसर्च सेंटर और यूनिवर्सिटीज जैसे कि MIT, ऑक्सफोर्ड और चाइना की कंपनियाँ इस टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ा रही हैं। भारत में भी कुछ स्टार्टअप और सरकारी संस्थाएं इस पर काम कर रही हैं ताकि इसे घरेलू बाजार के हिसाब से सस्ता और टिकाऊ बनाया जा सके। अभी शुरुआती चरण में यह टेक्नोलॉजी महंगी हो सकती है, लेकिन जैसे-जैसे इसका प्रोडक्शन बढ़ेगा और डिमांड बनेगी, इसकी कीमतें भी कम होंगी। अनुमान है कि आने वाले 2-3 सालों में यह स्ट्रिप्स भारत में आम आदमी के लिए उपलब्ध हो जाएंगी और तब बैटरी से छुटकारा पाने का सपना हकीकत में बदल जाएगा।

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